उत्तराखंड: भगवान केदारनाथ धाम के कपाट आज सुबह 5 बजे खुल गए. कोरोना वायरस के कारण इस मौके भक्तों की कमी देखने को मिली. पिछले साल भी कोरोना वायरस के चलते भक्तों की कमी थी. बता दें कि 19 नवंबर को केदारनाथ धाम के कपाट बंद किए गए थे.
केदारनाथ धाम के पट खुलने से पहले पूरे मंदिर को 11 कुंतल फूलों से सजाया गया. इस दौरान पूरे केदारनाथ धाम का वातावरण भक्तिमय रहा. मंदिर के कपाट खुलने के दौरान केदारनाथ रावल भीमाशंकर लिंग और मंदिर के मुख्य पुजारी बागेश लिंग, प्रशासन के लोग और स्थानीय लोग मौजूद रहे.सरकार और देवस्थानमं बोर्ड ने कोरोना गाइडलाइंस का पालन करते हुए सोमवार को केदारनाथ के कपाट खोले. हालांकि अभी किसी को भी मंदिर के गर्भगृह में जाने की इजाजत नहीं है.
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने ट्वीट कर कहा कि विश्व प्रसिद्ध ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ धाम के कपाट आज सोमवार को प्रातः 5 बजे विधि-विधान से पूजा-अर्चना और अनुष्ठान के बाद खोल दिए गए। मेष लग्न के शुभ संयोग पर मंदिर का कपाटोद्घाटन किया गया। मैं बाबा केदारनाथ से सभी को निरोगी रखने की प्रार्थना करता हूं.
केदारनाथ धाम की पौराणिक कथा
मान्यता के अनुसार केदारनाथ धाम को भगवान शिव का आवास बताया गया है. केदारनाथ धाम का जिक्र ‘स्कंद पुराण’ में भी आता है. इसमें बताया गया है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से प्रश्न किया. जिसके उत्तर में भोलेनाथ बताया कि यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं. भगवान शिव जी विस्तार से बताते हैं कि इस स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया था, तभी से यह स्थान उनके लिए आवास के समान है.
नारायण ऋषि ने की थी कठोर तपस्या
केदारनाथ की भूमि को स्वर्ग के समान माना गया है. एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने कठोर तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर सदैव के लिए इस स्थान पर निवास करने लगे.
भगवान शिव जब पांडवों से हो गए थे नाराज
पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडव इस स्थान पर अपने भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए आए थे. पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे. लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे. पांडव भगवान शिव से न मिल सके इसलिए शिवजी अंतध्र्यान होकर केदारधाम आ गए. पांडव भी शिवजी के पीछे पीछे चले आए. तब भगवान शिव ने भैंस का रूप ले लिया और वे अन्य पशुओं के झुंड में मिल गए. पांडवों ने तब भी हर नहीं मानी और भीम ने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया. भीम ने दो पहाड़ों तक पैर फैला दिए. ऐसा करने के बाद सभी गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए, लेकिन भगवान शिव ने पैरों के नीचे से जाने से मना कर दिया. तब भीम ने बैल को पकड़ने की कोशिश की लेकिन भगवान शिव बैल के रूप में भूमि में समा गए. लेकिन इसी बीच भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया. पांडवों के इन प्रयासों से भगवान शिव प्रसन्न हुए और पांडवों के दर्शन दिए. पांडवों ने भगवान शिव से हाथ जोड़कर विनती की. शिवजी ने पांडवों को पाप मुक्त कर दिया. तभी से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति को केदारनाथ में पूजा जाता है.