रांची: कोरोना की बंदिशों के बीच झारखंड में आज सादगी के साथ ईद मनायी जा रही है. न मस्जिदों में भीड़ उमड़ी, न ईदगाहों में कारवां आया, लेकिन घर-आंगन की दहलीज के भीतर लोगों ने नमाज पढ़ते हुए मुल्क में अमन-चैन की दुआएं मांगीं. इसके बाद एक दूसरे को मुबारकबाद देने का सिलसिला चलता रहा. पहले घर-परिवार के लोगों को मुबारकबाद पेश की और इसके बाद फेसबुक और वाट्सएप के जरिए रिश्तेदारों, दोस्तों और शुभचिंतकों को ईद मुबारक का संदेश भेजा.
इसके पहले ईद के चांद की तस्दीक होते ही रोजेदारों के चेहरे पर रौनक थी. लोगों में चांद देखने की उत्सुकता बढ़ गई थी. लोगों ने छतों व मैदानों में आकर चांद का दीदार किया. फिर मुबारक हो की सदाएं फिजां में गूंजने लगीं.रमजान के 30 रोजा मुकम्मल करने के बाद ईद की खुशियां लोगों ने एक-दूसरे के साथ बांटी. कुछ लोगों ने मस्जिद जाकर नमाज पढ़ी, लेकिन ज्यादातर परिवारों ने ईद की नमाज़ घरों में अदा की.
उलेमा मौलाना डॉ. शफीक अजमल ने ईद का पैगाम देते हुए कहा कि ईद का मतलब केवल यह नहीं कि महीने भर जो इबादत करके नेकियों की पूंजी एकत्र किया है उसे बुरे और बेहूदा कामों में जाया कर देना बल्कि ईद का मतलब है कि दूसरों को खुशियां बांटना.
मौलाना शफी अहमद कहते हैं कि दूसरों की मदद करना ईद का सबसे बड़ा मकसद है. मौलाना अजहरुल कादरी ने ईद की तवारीखी हैसियत पर रौशनी डालते हुए बताया कि सन दो हिजरी में सबसे पहले ईद मनायी गई. पैगंबरे इस्लाम नबी ए करीम हजरत मोहम्मद का वो दौर था.