रांची: झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने हिन्दी के साथ संताली भाषा को भी झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा देने को लेकर नियमानुसार कार्रवाई करने के निर्देश राज्य सरकार को दिया है। राज्यपाल के निर्देश पर उनके प्रधान सचिव शैलेश कुमार सिंह ने आदिवासी सेंगेल अभियान की मांग पर नियमानुसार कार्रवाई करने को लेकर मुख्य सचिव को पत्र लिखा है।
उन्होंने आदिवासी सलाहकार परिषद के गठन तथा इसकी बैठक बुलाए जाने को लेकर भी आवश्यक कार्रवाई करने का अनुरोध किया है। मालूम हो कि झारखंड से सटे ओडिशा से राज्यसभा के सदस्य सरोजिनी हेम्ब्रम ने भी पिछले दिनों राज्यसभा में पहली बार संताली भाषा में अपनी बात रखते हुए इसे सम्मान देने की बात कही थी। शून्यकाल में उन्होंने इस भाषा से जुड़ी समस्याओं को उठाया था।
संताली भाषा भारत, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान में बोली जाती है। करीब साठ लाख लोग इस भाषा को बोलते हैं। भारत में यह भाषा झारखंड, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम व त्रिपुरा आदि राज्यों में बोली जाती है। इस भाषा की लिपि को ओल चिकी कहा जाता है। इसे पंडित रघुनाथ मुर्मू ने तैयार किया था। वह लंबे समय तक झारखंड के पूर्वी सिंंहभूम जिले के जमशेदपुर शहर में भी रहे थे।
संताली भाषा में न सिर्फ साहित्य लिखे जा रहे हैं, बल्कि कई फिल्में भी बन चुकी हैं। खुद पंडित रघुनाथ मुर्मू ने दर्जन भर से अधिक रचनाएं इस भाषा में की थी। पर्याप्त सरकारी संरक्षण के अभाव यह भाषा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। ब्रिटिश सरकार के दौरान संताली भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती थी।
संताल समुदाय के आदिवासी संताल भाषा में ही बातचीत करते हैं। झारखंड में संताल समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। संताली भाषा बोलने वाले वक्ता को संताड़ी कहा जाता है। संताली भाषा में झारखंड को जाहेर खोंड कहा जाता है। इसका अर्थ होता है सरना स्थल।