4 घंटे सोकर और दिन रात साइकिल चलाकर 7 दिन में यह यात्रा पूरी की
देशभर में जारी लॉकडाउन के बीच देश के विभिन्न इलाकों से मजदूरों का पलायन जारी है। इस पलायन के साथ ही कई दर्दभरी कहानियां भी सामने आ रही हैं। ऐसी ही एक कहानी है ओडिशा के एक दंपत्ति की, जिन्होंने चेन्नई से ओडिशा की 1100 किलोमीटर की लंबी दूरी एक साइकिल पर ही नाप ली। दंपत्ति ने हर दिन सिर्फ 4 घंटे सोकर और दिन रात साइकिल चलाकर 7 दिन में यह यात्रा पूरी की। इस दौरान दंपत्ति ने सिर्फ बिस्किट और चावल खाकर गुजारा किया।
ओडिशा में अपने बच्चों की चिंता हुई
यह कहानी है ओडिशा के 36 वर्षीय अशोक बेहरा की, जो पेशे से राजमिस्त्री है। अशोक और उसकी पत्नी चेन्नई की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे लेकिन लॉकडाउन के चलते दंपत्ति की नौकरी चली गई। इसके बावजूद दोनों ने कुछ समय चेन्नई में ही गुजारा और लॉकडाउन खुलने का इंतजार किया लेकिन 14 अप्रैल को जैसे ही लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ा तो दंपत्ति को अपने खाने पीने और ओडिशा में अपने बच्चों की चिंता हुई।
इसके बाद अशोक ने ओडिशा के गंजम जिले के अपने गांव के ही एक दोस्त से बात की, जो कि चेन्नई में ही उनके साथ काम करता था। चूंकि सभी ट्रांसपोर्ट बंद थे, जिसके बाद कुल 7 लोगों के ग्रुप ने अलग अलग साइकिलों पर अपने घर जाने का फैसला किया।
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अशोक ने बताया कि उसकी पत्नी बच्चों को लेकर परेशान थी और उस पर घर चलने का दबाव बना रही थी। अशोक के अनुसार, उसने लव मैरिज की है। अशोक का कहना है कि ‘उसकी पत्नी ने उसकी खातिर अपने परिवार को छोड़ दिया तो मैं उसे परेशान नहीं देख सकता।’
अशोक ने बताया कि हमने 14 अप्रैल को शाम 3 बजे अपनी यात्रा शुरू की। अशोक और उसके दोस्तों ने अपनी पत्नियों को साइकिल के पीछे बैठाकर यात्रा शुरू की। रास्ते में खाने के लिए इन लोगों ने आलू, चावल, कुछ पैकेट बिस्किट और पानी की बोतलें आदि रखे।
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खबर के अनुसार, अशोक की पत्नी नमिता ने बताया कि तमिलनाडु के बाद आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में पुलिस ने उन्हें रोका लेकिन भाषा की दिक्कत के चलते वह एकदूसरे की बात नहीं समझ पाए। नमिता ने बताया कि पुलिस के रोकने पर हम सब रोने लगे और पुलिस से हमें जाने देने की अपील करने लगे। जिसके बाद पुलिस ने उन्हें जाने दिया। अशोक ने बताया कि रास्ते में लोगों ने उनकी काफी मदद की। कई जगहों पर लोगों ने खाने का सामान दिया तो कुछ ने अपने यहां सोने की जगह दी। एक चेक प्वाइंट पर पुलिस के जवानों ने उन्हें खाने के लिए चावल-सांभर और रास्ते की जानकारी दी।
इस दौरान मजदूरों के इस ग्रुप ने तेज धूप में पहाड़ी इलाकों में भी साइकिल पर रास्ता पार किया, जो कि काफी मुश्किल भरा रहा। मजदूरों ने बताया कि पहाड़ी इलाकों में हम अपनी पत्नियों को साइकिल से उतार देते थे, लेकिन अशोक ने अपनी पत्नी को कभी साइकिल से नहीं उतारा।
यह ग्रुप 21 अप्रैल को अपने गांव पहुंचा। हालांकि स्थानीय प्रशासन से उन्हें गांव के बाहर ही क्वारंटीन कर दिया है, लेकिन इन मजदूरों को अपने परिवार और बच्चो से मिलने की खुशी है। हालांकि अब इनके पास पैसे नहीं है और इन्होंने सरकार से उन्हें आर्थिक मदद देने की अपील की है।