रामगढ़ : झारखंड के रामगढ़ जिला में शव को कंधा देने के लिए चार लोग नहीं जुट पाए, तो भाई ठेले पर पार्थिव शारीर को रखकर श्मशान ले गया. वहां JCB मशीन से कब्र खोदी गयी और तब जाकर मृतक का अंतिम संस्कार किया गया. कोरोना संकट के बीच मानवता को शर्मशार करने वाला यह मामला जिला के गोला प्रखंड क्षेत्र के नावाडीह गांव का है.
मृतक 2 जून से होम क्वारंटाइन में था और उसने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना वायरस के खौफ के चलते लोग अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए. हालांकि, मृतक का कोरोना से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था. बताया जा रहा है कि जितेंद्र साव ने गुरुवार की रात को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी.
शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने शुक्रवार देर शाम परिजनों को शव सौंप दिया. शुक्रवार को लोग नहीं जुटे, तो अंतिम संस्कार शनिवार तक टाल दिया गया. शनिवार सुबह भी शव को कांधा देने के लिए लोग सामने नहीं आये. मृतक के भाई उमेश्वर ने लोगों से यहां तक मिन्नत की कि वह पैसे लेकर उसके भाई को कांधा दें, लेकिन इंसानियत इस कदर मर गयी थी कि कोई इसके लिए भी तैयार न हुआ.
थक-हारकर उमेश्वर अपने मामा अशोक साव एवं दशरथ साव, जो कोरांबे गांव के रहने वाले हैं, ने किराये पर एक ठेला लिया. उस पर जितेंद्र के शव को रखा और श्मशान घाट घसियागढ़ा ले गये. श्मशान घाट में कोई कब्र खोदने वाला नहीं मिला. यहां 1500 रुपये देकर जेसीबी की मदद से कब्र खुदवाया गया और तब जाकर जितेंद्र का अंतिम संस्कार किया गया. उमेश्वर ने बताया कि ग्रामीणों ने नाई को भी साथ जाने से मना कर दिया था. काफी हाथ-पैर जोड़ने पर वह श्मशान घाट जाने के लिए तैयार हुआ.
उमेश्वर ने बताया कि उसकी जाति के इस गांव में कम से कम 100 लोग हैं और अन्य जातियों के करीब 1000 से अधिक लोग गांव में रहते हैं.
उमेश्वर ने बताया कि उसका भाई जितेंद्र साव 2 जून को रेड जोन मुंबई से लौटा था. इसके बाद उसे होम क्वारंटाइन में रहने के लिए कहा गया था. उसमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं था. उसका सैंपल भी जांच के लिए नहीं लिया गया था. वह पूरी तरह स्वस्थ था.