जमशेदपुर: कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम की व्यवस्था सुधारते सुधारते मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री व कई अस्पताल अधीक्षक बदल गए। मगर एमजीएम अस्पताल की स्थिति बद से बदतर होती चली जा रही है। कितने आए और कितने गए, मगर आज तक एमजीएम अस्पताल की व्यवस्था को कोई सुधार नहीं पाया। अब आलम यह है कि एमजीएम अस्पताल से चलने वाली सारी सरकारी एंबुलेंस रखरखाव के अभाव में खराब हो चुकी है। साथ ही जो एंबुलेंस चल रही थी, उसमें भी 3 दिनों से तेल नहीं है। जिसके कारण वह भी खड़ी हो गई है। मगर इन सब समस्याओं से अस्पताल प्रबंधन बेखबर है। या फिर प्रबंधन को मरीजों की समस्याओं से कोई लेना देना ही नहीं है।
सिर्फ यही नहीं सरकारी एंबुलेंस खराब होने से प्राइवेट एंबुलेंस चालकों की चांदी हो गई है और वे मनमाने भाड़े पर मरीजों को घर समेत दूसरे अस्पतालों तक पहुंचा रहे हैं। जिसके कारण मरीजों और उनके परिजनों की परेशानी बढ़ गई है। जहां कम रूपए में ही मरीज अपने गंतव्य तक मरीज पहुंच जाते थे। वहां जाने के लिए अब उन्हें भारी भरकम राशि चुकानी पड़ रही है। जिससे मरीजों के परिजनों का हाल खस्ता हो चला है और वे दूसरों से कर्ज लेकर प्राइवेट एंबुलेंस का भाड़ा चुका रहे हैं। बताते चलें कि अस्पताल में दो विंगर एंबुलेंस, दो टाटा सुमो, एक मारुति वर्षा, एक फोर्स, एक ओमनी, मारुति इको और एक कार्डियक एम्बुलेंस मौजूद है। जिसमें से सिर्फ एक टाटा सुमो, एक फोर्स और एक इको एंबुलेंस रनिंग कंडीशन में थी।
जिसमें से फोर्स एंबुलेंस देर रात्रि अस्पताल से नर्सों को छोड़ने के लिए निकली और रास्ते में ही खराब हो गई। जबकि फोर्स और मारुति ओमनी एंबुलेंस कुछ दिनों पहले खराब हो चुकी है। वहीं सांसद निधि से अस्पताल को दी गई एकमात्र मारुति इको एंबुलेंस में तीन दिनों से तेल ना होने की वजह से अस्पताल में खड़ी हुई है। सिर्फ यही नहीं एक विंगर एंबुलेंस जो एमजीएम अस्पताल से मरीज को रांची स्थित रिम्स अस्पताल लेकर जाने के क्रम में नामकुम थाने के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी और जिसमें मरीज की जान बाल-बाल बच गई थी। जो एंबुलेंस आज तक रांची के नामकुम थाने में ही पड़ी हुई है। वहीं अस्पताल की सरकारी संपत्ति महीनों से थाने में पड़ी पड़ी सड़ रही है। मगर उसे वहां से लाने के लिए अस्पताल प्रबंधन ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। सिर्फ यही नहीं, अस्पताल की टाटा सुमो एंबुलेंस को मरम्मत के लिए तीन माह पहले आदित्यपुर स्थित मिथिला मोटर्स शोरूम में भेजा गया था। जिसके मरम्मतीकरण में 1 लाख 30 हजार रुपए की लागत आई थी और जहां से एक सप्ताह पहले ही मरम्मत होकर एंबुलेंस अस्पताल पहुंची। साथ ही अस्पताल प्रबंधन द्वारा बिल का भुगतान भी कर दिया गया। वहीं बीते 22 अगस्त को मरम्मत होकर आई टाटा सुमो एंबुलेंस सबर मरीज को अस्पताल से घर छोड़ने के लिए बोड़ाम गई थी। मगर वह एंबुलेंस टेस्टिंग के दौरान 50 किलोमीटर का सफर भी तय नहीं कर सकी और मरीज को छोड़कर वापस आते समय रास्ते में ही खराब हो गई। जिसे 23 अगस्त को दूसरे वाहन से जुगाड़ के माध्यम से खींच कर अस्पताल तक लाया गया। और तो और रांची खेलगांव से मिली लाखों की कार्डियक एम्बुलेंस आज भी इस्तेमाल होने के बजाय अस्पताल के पार्किंग में खड़ी खड़ी सड़ रही है।
मामले में अस्पताल अधीक्षक रविंद्र कुमार ने कहा कि आहिस्ता व्यवस्था में सुधार होगा। वहीं नामकुम थाने से एंबुलेंस लाने के लिए पत्र लिखा जा चुका है। मरम्मत कराई गई टाटा सुमो एंबुलेंस इतनी जल्दी खराब कैसे हो गई। इसकी भी जांच की जाएगी।