पटना की सड़कों पर रविवार की सुबह में कई बुल्डोज़र दिखें. यह सभी बुल्डोज़र राजीव नगर स्थित नेपाली नगर में 70 मकानों को ध्वस्त करने के लिए पहुंचे. प्रशासन की इस कार्रवाई से मौके पर तनाव पूर्ण स्थिति पैदा हो गई है. आक्रोषित लोग सड़कों पर उतर गये. यहां विरोध को देखते हुए करीब चार थानों की पुलिस के साथ आसपास के इलाकों में 2000 हजार पुलिस बाल को तैनात किया गया.
70 मकानों को तोड़ने की कार्रवाई
प्रसाशन के द्वारा यहां अभी तो 70 मकानों को तोड़ने की कार्रवाई हो रही है. लेकिन यह पूरा विवाद 1024 एकड़ जमीन का है. इस विवादित जमीन पर कई लोगों के घर बन चुके हैं. इन मकानों में नेता, मंत्री, जज और आइएएस, आइपीएस के भी कई ठिकाने शामिल हैं. विस्तार से जानें क्या है पूरा विवाद.
1974 से चल रहा विवाद
राजीव नगर का यह जमीन विवाद वर्ष 1974 से ही चल रहा है. 1974 में आवास बोर्ड ने 1024 एकड़ में आवासीय परिसर बनाने का फैसला लिया था. बोर्ड ने यहां की जमीन को अधिग्रहित किया था. परंतु मुआवजा नहीं देने के कारण मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया था. सुप्रीम कोर्ट ने आवास बोर्ड को भेदभाव दूर कर मुआवजा देने का निर्देश दिया था. परंतु इस पर आवास बोर्ड की तरफ से आजतक अमल नहीं किया गया.
1024 एकड़ में 10000 से ज्यादा मकान
आवास बोर्ड के द्वारा मुआवजा नहीं दिए जाने के बाद यहां के किसानों ने जमीन की खरीद बिक्री शुरू कर दी. जिसके बाद से दीघा एवं राजीव नगर का विवाद बढ़ता चला गया. वर्तमान में इस 1024 एकड़ में लगभग 10000 से ज्यादा मकान बन चुके हैं.
बढ़ गई है जमीन की कीमत
जिस वक्त इस जमीन का अधिग्रहण किया गया था इसकी कीमत 2000 रुपये प्रति कट्ठा थी. परंतु वर्तमान में यहां की जमीन को 90 लाख रुपये कट्ठा के आसपास बेचा जा रहा है. दीघा के पूर्व मुखिया और किसान नेता का कहना है की अगर आवास बोर्ड अभी के दाम से किसानों को मुआवजा दे तो कोई परेशानी नहीं होगी. लेकिन आवास बोर्ड बिना मुआवजा दिए जमीन पर जबरन कब्जा करना चाहती है.
आईएएस की जमीन बनी विवाद का कारण
इस मामले ने उस वक्त तूल पकड़ा जब आवास बोर्ड ने 1024 एकड़ में से एक आईएएस अधिकारी की चार एकड़ जमीन मुक्त कर दी जो की परिसर के बिलुल बीच में पड़ता है. इसी को दीघा के किसान ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. किसानों का कहना था की जिस तरह से आईएएस अधिकारी की जमीन को मुक्त किया गया है. उसी तरह हमारी जमीन को भी मुक्त किया जाए. आवास बोर्ड ने किसानों की यह बात नहीं मानी और फिर विवाद बढ़ता चला गया.