रांची: लालू प्रसाद यादव एक बार फिर से अपनी जमानत के लिए झारखंड हाई कोर्ट पहुंचे हैं। दावा वही पुराना कि चारा घोटाला के दुमका कोषागार मामले में सीबीआइ की विशेष अदालत से मिली सात साल की सजा की आधी अवधि उन्होंने जेल में बिता ली है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उन्हें जमानत दी जानी चाहिए। हालांकि, निचली अदालत ने लालू यादव को इस मामले में दो अलग-अलग धाराओं में सात-सात साल, कुल 14 साल की सजा सुनाई जानी है। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट लिखा है कि दोनों सजाएं अलग-अलग चलेंगी और एक सजा पूरी होने के बाद दूसरी सजा चालू हो जाएंगी। सीबीआइ ने अदालत के इस आदेश को अब लालू की जमानत के खिलाफ ब्रह्मास्त्र के रूप में उपयोग किया है।
बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के पिता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की जमानत इस बार भी उतनी आसान नहीं दिख रही है, जितनी 2 माह की बाकी सजा पूरी करने के बाद माना जा रहा था। लालू यादव के वकील कपिल सिब्बल को एक बार फिर से पछाड़ने की ताक में केंद्रीय जांच एजेंसी, सीबीआइ ने अपने तरकस से नये तीर छोड़े हैं।
एजेंसी ने अब सीधे-सीधे लालू यादव की जमानत याचिका पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। ब्यूरो का कहना है कि चारा घोटाले के दुमका कोषागार मामले में लालू प्रसाद की जमानत याचिका का कोई औचित्य ही नहीं है, उन्हें सीबीआइ की विशेष अदालत ने कुल 14 साल की सजा सुनाई है। दो अलग-अलग धाराओं में सात-सात साल की सजा लालू को दी गई है। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि दोनाें सजाएं अलग-अलग चलेंगी। एक सजा पूरी हाेने के बाद दूसरी सजा शुरू हो जाएगी।