रांची: नौकरी में परमानेंट करने की मांग को लेकर पिछले शनिवार से आंदोलनरत सहायक पुलिसकर्मियों से बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुलाकात की। इस दौरान रघुवर दास ने कहा कि नक्सल क्षेत्र के युवाओं को गुमराह होने से बचाने के लिए हमारी सरकार ने अनुबंध पर सहायक पुलिस में आदिवासी-मूलवासी युवाओं को नियुक्त किया। नक्सलवाद पर काबू पाने में इनकी भूमिका अहम रही। आदिवासी-मूलवासी की हितैषी होने का दावा करनेवाली वर्तमान सरकार इनके साथ अमानवीय व्यवहार कर रही है।
रघुवर दास ने कहा कि सहायक पुलिसकर्मियों को आंदोलन करते चार दिन हो गये हैं, लेकिन अब तक न तो कोई मंत्री न ही अधिकारी इनकी समस्या सुनने आया है। उलटे इनपर एफआईआर दर्ज की जा रही है, इनकी परिवार वालों को डराया-धमकाया जा रहा है। लोकतंत्र में इस प्रकार का दमन बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।। जिस पार्टी ने आंदोलनकारी का चोला पहनकर भाजपा सरकार की बदनामी कर सत्ता हासिल की। वही आज मुंह छिपाते घूम रही है। इन सहायक पुलिसकर्मियों के दर्द को दरकिनार कर अपनी जिम्मेवारी से भाग रही है। ये तपती धप व कोरोना के बीच अपने घर से दूर छोटे-छोटे बच्चों को लेकर आंदोलन करने को बाध्य हैं।
उग्रवाद को खत्म करने में सहायक पुलिसकर्मियों की बड़ी भूमिका रही है: रघुवर दास
झारखंड गरीब राज्य है, उग्रवाद से प्रभावित राज्य है। मैंने अपने शासनकाल में महसूस किया था कि नौजवान युवक-युवतियां रोजगार के लिए भटक रहे थे। गलत रास्ते पर जा रहे थे, जंगल में चले जाते थे और वहां कोई इन्हें बंदूक पकड़ा कर गुमराह कर देता था। सरकार की जिम्मेदारी है कि जो भटके हुए नौजवान हैं, उनको राज्य की मुख्य धारा में शामिल करे। इसी को ध्यान में रखते हुए जो उग्रवाद प्रभावित जिले हैं, यहां जो प्रखंड ज्यादा उग्रवाद प्रभावित थे। पिछले पांच साल में इन इलाकों में उग्रवाद पर लगाम लगा था जिसमें आज धूप में खड़े सहायक पुलिसकर्मियों की बहुत बड़ी भूमिका है। इसका कारण है कि उग्रवादियों को गांव में बंदूक उठाने वाला कोई नहीं मिला। इसी को ध्यान में रखते हुए पूर्व की सरकार ने तय किया था कि 10 हजार रुपए प्रतिमाह, तीन साल तक ट्रेनिंग के साथ काम करते हुए इन्हें दिया जाएगा। जब पुलिस की नियुक्ति होगी तब इन सहायक पुलिसकर्मियों को सबसे पहले प्राथमिकता दी जाएगी।
रघुवर दास ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान भी पूरे राज्य में सहायक पुलिसकर्मियों ने बड़ी भूमिका अदा की। सड़क पर ट्रैफिक को सुव्यवस्थित करना या फिर अन्य काम, इन्होंने अपने कर्तव्य को बखूबी निभाया। इनमें आदिवासी, मूलवासी, दलित, शोषित, वंचित परिवार के अधिकतर युवक-युवतियां शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सरकार गठन के दौरान भी झामुमो और कांग्रेस ने बड़े-बड़े वादे किए थे। आज भी वादा कर रहे हैं कि तीन महीने में हम लोगों को रोजगार देंगे। लेकिन पिछले नौ महीने में एक भी रोजगार किसी को राज्य सरकार ने नहीं दिया। सिर्फ सहायक पुलिसकर्मियों की ही नहीं, बल्कि और भी संविदा कर्मी हैं जिनकी नौकरी जा रही है। ऐसे में राज्य सरकार को मेरी सलाह है कि उच्चस्तरीय बातचीत कर सहायक पुलिसकर्मियों की नियुक्ति प्रक्रिया में पहल करनी चाहिए।
रघुवर दास के कार्यकाल में ही हुई थी सहायक पुलिसकर्मियों की नियुक्ति
राज्य के 12 नक्सल प्रभावित जिलों में साल 2017 में रघुवर दास के कार्यकाल में ही 2500 सहायक पुलिसकर्मियों की कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्ति की गई थी। सहायक पुलिसकर्मियों का कहना है कि अनुबंध खत्म हो जाने के बाद उन्हें परमानेंट कर देने की बात कही गई थी। लेकिन, अभी तक उन्हें परमानेंट करने की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है। सहायक पुलिसकर्मियों का कहना है कि नियुक्ति के दौरान उन्हें सिर्फ अपने थाना क्षेत्र में ही ड्यूटी करने की बात कही गई थी लेकिन वे अपने थाना समेत अपने जिला और अन्य जिलों में भी कई तरह की ड्यूटी कर चुके हैं।
सहायक पुलिसकर्मियों ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होगी, वे लोग किसी कीमत पर अपने गृह जिला नहीं लौटेंगे। हालांकि, 12 जिलों से आए सहायक पुलिसकर्मियों से संबंधित जिलों के एसपी और सार्जेंट मेजर लगातार संपर्क कर उन्हें वापस ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। मोरहाबादी मैदान में भी दो से तीन एसपी प्रतिदिन सहायक पुलिस कर्मियों को समझाने के लिए आ रहे हैं, लेकिन उनकी बात कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं है।
मोरहाबादी मैदान के चारों ओर बैरिकेडिंग
एहतियातन मोरहाबादी मैदान के समीप सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। मैदान से बाहर निकलने वाले चारों तरफ के रास्ते में बैरिकेडिंग की गई है। पुलिस बल तैनात किए गए हैं। वरीय पुलिस अधिकारियों द्वारा सख्त हिदायत दी गई है कि किसी भी हाल में सहायक पुलिस कर्मियों को सीएम आवास और राजभवन की ओर नहीं जाने दिया जाए। हालांकि, सहायक पुलिसकर्मी लगातार अपनी बात सीएम तक पहुंचाने के लिए राजभवन की ओर जाने का प्रयास कर रहे हैं। सहायक पुलिस कर्मियों पर दबाव बनाने के लिए प्रतिनियुक्त मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आवेदन के आधार पर प्राथमिकी भी दर्ज की जा चुकी है। हालांकि इसके बाद भी सहायक पुलिसकर्मी मानने के बजाय और भी ज्यादा आक्रोशित हो गए हैं।