रांची. कोरोना संक्रमण के चलते रांची में आयोजित होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पर संशय बना हुआ है. वहीं, भगवान जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति और मंदिर के मुख्य पुजारी इस सिलसिले में सरकार के निर्देश के इंतजार में हैं. हालांकि इस बीच रथयात्रा को लेकर तैयारी चल रही है. भगवान जगन्नाथ के रथ को तैयार किया जा रहा है.
300 सौ साल से निकाली जा रही रथयात्रा
राजधानी रांची में पिछले 300 साल से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती रही है. साल 1693 में पहली बार रथ पर सवार होकर भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मौसी के घर आए थे. पर इस बार कोरोना संकट के चलते रथ यात्रा को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है. हालांकि जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति और मंदिर के मुख्य पुजारी को उम्मीद है कि पुरी की तरह रांची में भी शर्तों के साथ रथयात्रा सम्पन्न कराने की अनुमति मिल जाएगी.
23 जून को रथयात्रा
अभी भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अज्ञातवास में हैं. इस वर्ष 22 जून को भगवान अज्ञातवास से लौटेंगे और उनका नेत्रदान होगा. नेत्रदान के अगले दिन भगवान अपने भाई और बहन के साथ रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी आएंगे. हर साल हजारों श्रद्धालु की 100 टन वजनी रथ को खींचकर मौसीबाड़ी पहुचाते हैं. हालांकि इसबार अभीतक जिला प्रशासन ने रथयात्रा को लेकर कोई स्थिति स्पष्ट नहीं की है. पर मंदिर न्यास समिति ने अपनी ओर से तैयारी जारी रखी है.
हर साल भगवान जगन्नाथ का रथ तैयार करने वाले कारीगर महावीर लोहार को उम्मीद है कि इस बार भी 300 वर्ष से ज्यादा समय से चली आ रही रथयात्रा की परम्परा का निर्वहन होगा. उसके द्वारा तैयार रथ पर सवार होकर भगवान जगन्नाथ भक्तों को दर्शन देंगे.
पुरी की तर्ज पर आयोजन की मांग
रांची जगन्नाथ मंदिर न्यास समिति के अनुसार ओडिशा में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए इस बार हाथी या मशीन से भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने की अनुमति दी है. न्यास समिति उसी तर्ज पर रांची में सरकार से अनुमति चाहताी है, ताकि रथयात्रा की परंपरा रूके नहीं.