Jharkhand Padma Shri: गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कार की घोषणा की गई। झारखंड की चामी मुर्मू को भी पद्म पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की घोषणा हुई है। चामी मुर्मू का जीवन जनजातीय पर्यावरण और महिला सशक्तीकरण के नाम रहा है। उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पुरस्कार दिया था। पिछले 28 सालों में चामी 28 हजार महिलाओं को स्वरोजगार दे चुकी हैं।
28 हजार से अधिक महिलाओं को रोजगार से जोड़ा
लेडी टार्जन के नाम से मशहूर चामी मुर्मू ने सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर प्रखंड अंतर्गत 40 से अधिक गांवों की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा है। एसएचजी से जुड़ने के बाद 40 से अधिक गांवों की इन महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव आया। चामी मुर्मू के प्रयास से इन गांवों की 28 हजार से अधिक महिलाओं को रोजगार से जोड़ा गया, जिसकी वजह से उनके सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। महिलाएं सशक्त हुई।
जंगल की अवैध कटाई और नक्सलियों के खिलाफ जंग
चामी मुुर्मू ने जंगल की अवैध कटाई के खिलाफ जंग छेड़ कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा काम किया। इसके अलावा चामी ने लकड़ी माफिया और नक्सल गतिविधियों के खिलाफ भी पूरे समर्पण के साथ अभियान चलाया। जंगल और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए उनके कार्यों की वजह से ही उन्हें ‘लेडी टार्जन’ का दर्जा मिल चुका है।
शाम को जब गृह मंत्रालय से कॉल आया, तो यकीन नहीं हुआ : पूर्णिमा महतो
आर्चरी कोच पूर्णिमा महतो को एक और बड़ा सम्मान मिलने जा रहा है. झारखंड की इस महिला कोच को पद्मश्री से नवाजा जाएगा. भारत सरकार ने इसकी घोषणा कर दी है. बता दें कि इससे पहले उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. वह स्टार तीरंदाज दीपिका सहित कई खिलाड़ियों को ट्रेनिंग भी दे चुकी है.
पूर्णिमा महतो एक शानदार खिलाड़ी व जानदार कोच
भारत सरकार की ओर से पूर्णिमा महतो को पद्श्री पुरस्कार देने की घोषणा के बाद पूर्णिमा महतो ने फोन पर प्रभात खबर को बताया कि उसके लिए यह काफी गौरवपूर्ण क्षण है. भारत सरकार, परिवार के सदस्यों, टाटा स्टील और शुभचिंतकों का शुक्रिया किया, जिनकी वजह से वह इस मुकाम तक पहुंची है. उन्होंने बताया कि चार बार उनके मोबाइल फोन पर गृह मंत्रालय से कॉल आया. पहले तो यकीन नहीं हुआ, लेकिन रात होते-होते यकीन हुआ कि मुझे पद्मश्री मिल रहा है.
1987 में पूर्णिमा महतो ने आर्चरी शुरू की. लेडी इंदर सिंह स्कूल से दसवीं तक की पढ़ाई करने वाली पूर्णिमा जब अपने घर (उस वक्त बिरसानगर जोन-1 में रहती थी) से स्कूल आना-जाना करती थी, तो उसके घर के पास एक मैदान था. उसी में कोच लॉरेंस क्रिस्पोटा खिलाड़ियों को आर्चरी की ट्रेनिंग देते थे. यह देख पूर्णिमा महतो का भी मन इस खेल को सीखने का हुआ. जब उसने यह बात घर पर कही तो आम माता-पिता की तरह उनके माता-पिता ने पहले न कहा. लेकिन फिर पूर्णिमा महतो के पिता मान गये.