शारदीय नवरात्र 3 अक्तूबर से शुरू हो रहा है. आश्विन माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्र शुरू होता है. नवरात्र पर माता के आह्वान के लिए घरों और मंदिरों में तैयारी पूरी कर ली गयी है.
अक्तूबर को महालया के साथ ही पितृपक्ष का समापन व मातृ पक्ष का आगमन हो जायेगा. गुरुवार को कलश स्थापन के साथ ही माता की आराधना शुरू हो जायेगी. इस बार मां का आगमन डोली व गमन पैदल हो रहा है. नवरात्र को लेकर श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह है. नवरात्र के अलग-अलग दिनों में मां के अलग-अलग रूप की पूजा की जाती है. पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होगी. इनकी पूजा करने से साधक की मनोकामना पूर्ण होती है. 12 अक्तूबर को विजया दशमी के साथ शारदीय नवरात्र का समापन होगा. पंडित गुणानंद झा ने बताया कि कलश स्थापन ब्रह्म मुहूर्त सुबह चार बजे से प्रारंभ हो जायेगा जो शाम चार बजे तक रहेगा. अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक है. इस मुहूर्त में कलश स्थापन करें.
दुर्गा सप्तशती का पाठ करना शुभ :
शास्त्रों में वर्णित है कि नवरात्र पर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अति शुभ है. देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. देवी का पाठ शुद्ध शरीर व शुद्ध मन से करना चाहिए. महाअष्टमी के दिन उपवास रखकर पुष्पांजलि अर्पित की जाती है. नवमी तिथि को हवन के बाद कुंवारी कन्याओं का पूजन किया जाता है. उसके बाद उपवास खोला जाता है.
ऐसे करें कलश स्थापना :
साधक स्नान ध्यान कर शुभ मुहूर्त में पूरब मुख आसन में बैठ जायें. शरीर शुद्ध कर लें. शरीर शुद्धिकरण ऊं अपवित्र पवित्रोवा मंत्र से करें. सर्व प्रथम गणपति देव का स्मरण कर पूजा का संकल्प लें. फिर उनका पूजन अक्षत, चंदन, फूल, धूप, दीप नैवेद्य से करें. उसके बाद नौ गह्र, कुलदेवी, कुल मातृकाओं का पूजन करें और फिर कलश स्थापित करें. कलश स्थापना के बाद मां का आवाहन करें.
कलश स्थापना की विधि :
पंडित गुणानंद झा बताते हैं कि जातक दुर्गावेदी के सामने या दक्षिण भाग में बालू बिछाकर उस पर स्वास्तिक या अष्टदल कमल बनायें. उस पर सप्तधान (जौ, गेहूं, धान, तिल, कौनी, चना, सांवा) रखकर कलश रखें. कलश में स्वास्तिक बना दें. मौली धागा कलश में लपेट दें. कलश में जल भरकर उसमें सप्तमृतिका (सात तरह की मिट्टी) डालें. पंच रत्न, सर्वोषधि डाले. भगवती का स्मरण कर पृथ्वी को स्पर्श करें. कलश में अक्षत, फूल, चंदन, सुपारी, सिक्का डालकर आम्र पल्लव डालें. उसके ऊपर चावल से भरा ठक्कन रख दें. लाल कपड़े में नारियल लपेट कर चावल के ऊपर रख दें. कलश स्थापित करते समय मंत्रोचारण करें. कलश धिष्ठात्री देवता भ्यो नम: वरूणादि देवता भ्यो नम:
दुर्गा सप्तशती का पाठ करना शुभ :
शास्त्रों में वर्णित है कि नवरात्र पर नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अति शुभ होता है. देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. महाअष्टमी के दिन उपवास रख मां सिद्धिदात्री रूप की पूजा कर उनके चरणों में भक्ति समर्पित करें. पुष्पांजलि अर्पित कर सुख समृद्धि के लिए आशीष मांगें. नवमी तिथि को हवन के बाद नौ कुंवारी कन्याओं का पूजन मां के नौ रूप में करें.
ऐसे करें मां शैलपुत्री का आवाहन
नवरात्र के पहले दिन देवी दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है. इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा के पहले अखंड ज्योति प्रज्वलित कर लें और शुभ मुहूर्त में घट स्थापना करें. पूर्व की ओर मुख कर चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और माता का चित्र स्थापित करें. सबसे पहले गणपति का आह्वान करें और इसके बाद हाथों में लाल रंग का पुष्प लेकर मां शैलपुत्री का आह्वान करें. मां की पूजा के लिए लाल रंग के फूलों का उपयोग करना चाहिए. मां को अक्षत, सिंदूर, धूप, गंध, पुष्प चढ़ाएं. माता के मंत्रों का जप करें. घी से दीपक जलाएं, मां की आरती करें, शंखनाद करें. घंटी बजाएं, मां को प्रसाद अर्पित करें. माता शैलपुत्री की पूजा के समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नमः