रांची। राज्य में कोयला खनन के क्षेत्र में माफिया का वर्चस्व तोडऩे के लिए डीजीपी एमवी राव को पहले अपनी ही पुलिस से निपटना पड़ रहा है। माफिया को संरक्षण देने, अवैध तरीके से कोयले का धंधा कराने के एवज में पुलिस अधिकारी अपने खाते में रिश्वत की राशि मंगा रहे हैं। लातेहार में इसका खुलासा हो चुका है। पिछले दिनों इस मामले में बालूमाथ के थानेदार, एसडीपीओ के रीडर को लाइन हाजिर किया गया।
मामले में एसडीपीओ का भी तबादला कर दिया गया है। पूरे मामले की जांच विशेष जांच टीम (एसआइटी) से कराई जा रही है। जांच में एसआइटी को इस बात का पूरा ब्योरा मिल चुका है कब-कब माफिया से पुलिसकर्मियों ने खाते में पैसे मंगवाए लेकिन अभी पूरी राशि का खुलासा नहीं किया जा रहा। वहीं, इसी प्रकरण में एसआइटी ने कोयले के काले धंधे से जुड़े पांच लोगों को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
सरकारी तंत्र की मिलीभगत हो चुकी है उजागर
राज्य में टेरर फंडिंग से संबंधित कई मामलों की जांच कर रही एनआइए ने भी अपने अनुसंधान में यह साबित कर दिया है कि माफिया राज में सरकारी तंत्र की मिलीभगत है। कोयला खनन में ठेकेदार व कंपनियों के कर्मी ही नक्सलियों के नाम पर लेवी वसूलकर मालामाल होते रहे हैं। दरअसल पूरा खेल कमीशन का है। इसमें केवल नक्सली ही मालामाल नहीं हो रहे, बल्कि उन्हें लेवी पहुंचाने वाला भी पैसे की बंदरबांट कर रहा है।
एनआइए के अनुसंधान के मामलों से पूरे प्रकरण को समझा जा सकता है। पहला मामला चतरा के मगध व आम्रपाली परियोजना में टेरर फंडिंग का है। यहां सीसीएल के कर्मी सुभान खान को एनआइए ने गिरफ्तार किया था। पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि वह सीसीएल व उग्रवादी संगठन तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी (टीएसपीसी) के बीच समन्वय स्थापित करता है, जिसके बाद ही खनन होता है।
यह काम करते हुए सुभान खान भी अरबपति बन गया। ट्रांसपोर्टर ने भी यहां उग्रवादियों के नाम पर ऊंची दर पर ठेका इसलिए लिया कि वह अतिरिक्त रुपये उग्रवादियों को देगा। हालांकि कितना पैसा कहां पहुंचा, यह कोई नहीं जानता। मगध व आम्रपाली प्रोजेक्ट के इस बड़े खेल में सीसीएल के कई अधिकारी भी फंसे हुए हैं। इस बात का खुलासा हो चुका है कि इस पूरे प्रकरण में केवल उग्रवादी ही नहीं, उनके साथ-साथ उन्हें सहयोग करने वाले कथित अधिकारी व कर्मी भी शामिल हैं।