झारखंड के सारंडा वन क्षेत्र को संरक्षित करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार की पांच मंत्रियों की टीम क्षेत्र में पहुंची। टीम का उद्देश्य था स्थानीय ग्रामीणों से चर्चा करना और संरक्षण योजना के महत्व को समझाना।
टीम में शामिल प्रमुख मंत्री थे: वन विभाग मंत्री, ग्रामीण विकास मंत्री और अन्य संबंधित विभागों के मंत्री।
ग्राम आभा में हुई बैठक और ग्रामीणों का विरोध
सारंडा के 60 गांवों के ग्रामीणों ने ग्राम आभा में बैठक में भाग लिया। लेकिन इस दौरान ग्रामीणों ने एक स्वर में सारंडा वन संरक्षण योजना का विरोध किया।
ग्रामीणों का कहना था कि:
- यह योजना उनकी भूमि और जीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।
- जंगल पर उनके पारंपरिक अधिकार और संसाधनों की पहुँच सीमित हो जाएगी।
- कई गांवों में कृषि और पशुपालन के लिए जंगल पर निर्भरता है, जिसे नजरअंदाज किया गया।
ग्रामीणों ने अपने विरोध स्वरूप ज्ञापन सौंपा और संरक्षण योजना में स्थानीय हितों को प्राथमिकता देने की मांग की।
सरकार और मंत्रियों का रुख
मंत्रियों ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि संरक्षण योजना लागू करते समय स्थानीय समुदायों के हितों का ध्यान रखा जाएगा।
साथ ही उन्होंने वन क्षेत्र के महत्व और पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता को भी बताया।
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीणों के समर्थन के बिना संरक्षण योजना पूरी तरह सफल नहीं हो सकती। इसलिए सरकार को सामंजस्यपूर्ण समाधान निकालना होगा।
सारंडा वन का महत्व
सारंडा वन झारखंड का हरा-भरा क्षेत्र है, जो वन्य जीवों, पक्षियों और जैव विविधता का मुख्य केंद्र है।
- क्षेत्र में कई दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- जंगल ग्रामीणों के लिए पारंपरिक संसाधनों का स्रोत भी है।
- संरक्षण न होने पर वन्य जीवन और स्थानीय अर्थव्यवस्था दोनों पर संकट आ सकता है।
निष्कर्ष
सारंडा वन संरक्षण योजना और स्थानीय ग्रामीणों की आजीविका के बीच संतुलन बनाना अब सरकार की बड़ी चुनौती बन गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और ग्रामीण विरोध के बीच संतुलित समाधान की तलाश ही भविष्य की राह तय करेगा।