रांची के कांके स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तीन दिवसीय आयोजित पूर्वी क्षेत्रीय प्रादेशिक कृषि मेला एवं एग्रोटेक किसान मेले का उद्घाटन झारखंड की राज्यपाल-सह-कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू ने किया. उन्होंने कहा कि देश के विकास, खाद्य और पोषण सुरक्षा तथा राष्ट्र की स्थिरता के लिए किसानों का सम्मान, उनकी आवश्यकता आधारित तकनीकी जरूरतों की पूर्ति एवं उनकी हितों की रक्षा करना हमारी प्राथमिकता सूची में पहले पायदान पर होना चाहिए. वर्षा आधारित खेती झारखंड के किसानों की कृषि से आय में कमी की मुख्य वजह है. सिंचाई के अभाव में हर वर्ष धान की कटाई के बाद कृषि भूमि बिना किसी उपयोग के परती रह जाती है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर स्थापित इस कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसान मेले का आयोजन किया गया है. प्रदेश के किसानों के हित में कृषि तकनीकी नवीनता के साथ आयोजन इस मेले की प्रमुख विशेषता है. कृषि उद्यमों के विविधिकरण द्वारा ग्रामीण सम्पन्नता रखा गया है. बदलते वैश्विक कृषि परिवेश एवं कोरोना काल के मद्देनजर इस विषय से विश्वविद्यालय की दूरगामी सोच झलकती है.
किसानों को खेती-बारी की नवीनतम तकनीकों से अवगत कराने के लिए ये तीन दिवसीय किसान मेला आयोजित किया गया है. इस मेले में तकनीकों का, सेवाओं का, उपादानों और उत्पादों का जीवंत प्रदर्शन किया जा रहा है तथा किसानों-पशुपालकों की तकनीकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रत्येक विषय के विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक भी उपलब्ध हैं. देश की 70 फीसदी से अधिक आबादी गांवों में बसती है. इसलिए ग्रामीणों की खुशहाली और किसानों के हितों की रक्षा के लिए ये आयोजन काफी महत्वपूर्ण है.
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक धान कटाई के बाद भूमि में बची नमी से रबी फसलों की कम अवधि वाली फसल किस्मों को विकसित करने के लिए लगातार शोध कर रहे हैं. हाल ही में विश्वविद्यालय की वैज्ञानिकों द्वारा विकसित विभिन्न दलहनी एवं तेलहनी फसलों की तेरह किस्मों एवं बैंगन सब्जी की तीन किस्मों को चिन्हित किया गया है.
पशुधन क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए छोटे और सीमांत किसानों को आजीविका एवं पोषण सुरक्षा तथा आय में बढ़ोतरी के लिए पशु, मत्स्य, बकरी-पालन एवं कुक्कुट पालन सर्वाधिक महत्वपूर्ण विकल्प साबित हो सकता है. देश में कृषि योग्य सीमित भूमि एवं देश की भावी खाद्यान जरूरतों को कम भूमि, कम जल एवं कम श्रमिक आधारित अधिक उत्पादन एवं लाभ वाली तकनीकों से ही पूरा किया जाना संभव होगा. इस दिशा में वैज्ञानिकों को सदैव लाभकारी नवाचार तकनीकों को विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा.
झारखंड के एकमात्र कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत चार वर्ष पूर्व तक मात्र 4 कॉलेज थे, जिनकी संख्या बढ़कर अब 11 हो गयी है. अब राज्य के दूर-दराज के जिलों के छात्र-छात्राओं को उनके द्वार पर ही तकनीकी शिक्षा की सुविधा उपलब्ध हो रही है. देवघर, गोड्डा और गढ़वा में स्थापित नए कृषि महाविद्यालयों के साथ हंसडीहा, दुमका में डेयरी प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, गुमला में मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय, खूंटपानी, चाईबासा में हॉर्टिकल्चर तथा बीएयू के कांके, रांची स्थित कृषि यांत्रिकी कॉलेज का संचालन किया जा रहा है. इन विषयों के तकनीकी महाविद्यालय झारखंड में पहले नहीं थे.