नई दिल्ली। गुणवत्ता के दावों के साथ चीन से आइ रैपिड टेस्ट किट पहली नजर में असफल होती दिख रही है। इस किट के रिजल्ट में छह फीसदी से 71 फीसदी तक अंतर आ रहा है। किट की गुणवत्ता की जांच के लिए आइसीएमआर ने अपने आठ संस्थानों को फील्ड में भेजने का फैसला किया है। वैसे खून में एंटीबॉडी पर आधारित इस किट का इस्तेमाल कोरोना मरीज का पता लगाने के बजाय सर्विलांस के लिए किया जा रहा है, लेकिन इतने अंतर के बाद सर्विलांस में भी गलत नतीजे निकलने की आशंका बढ़ गई है। पिछले हफ्ते ही चीन से 6.5 लाख रैपिड टेस्टिंग किट मंगाए गए थे।
अन्य राज्यों से भी मांगी गई रिपोर्ट
स्थिति खराब होने की डब्ल्यूएचओ की आशंका को किया खारिज
लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर डब्ल्यूएचओ की चेतावनी और इसमें ढील देने की स्थिति में 1918 के स्पेनिश फ्लू की तरह करोड़ों लोगों की मौत की आशंका को आइसीएमआर ने सिरे से खारिज कर दिया। डाक्टर गंगाखेड़कर ने कहा कि जितनी हमारे पास ताकत है, उसमें हम हर चीज करने की कोशिश कर रहे हैं।लोगों को विज्ञान पर भरोसा रखने की सलाह देते हुए डाक्टर गंगाखेड़कर ने कहा कि हमको यह समझना होगा कि पिछले साढ़े तीन महीने में जो भी प्रगति हुई है, उसी की वजह से वायरस से ग्रसित लोगों की पहचान हो पा रही है। साढ़े तीन महीने में किसी भी नई बीमारी का पीसीआर टेस्ट पहली बार सामने आया है, जो काफी सटीक है। यही नहीं, साढ़े तीन महीने में 70 वैक्सिन की खोज हो चुकी है और उनमें से पांच वैक्सिन मानव पर ट्रायल के फेज में जा चुका है। ऐसा आज तक कभी किसी बीमारी में नहीं हुआ है। यदि इस रफ्तार से इसकी खोज हो रही है, तो हमें डरने की कोई जरूरत नहीं है।