झारखंड के निकाय चुनाव को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है। पिछड़ा वर्ग के लिए राज्य आयोग ने ट्रिपल टेस्ट की फाइनल रिपोर्ट शुक्रवार को नगर विकास विभाग को सौंप दी। रिपोर्ट सौंपे जाने की पुष्टि आयोग के सदस्य नंदकिशोर मेहता ने की। वहीं राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर अलका तिवारी की नियुक्ति भी कर दी गई है। इसके साथ ही पिछले ढाई साल से अधिक समय से लंबित निकाय चुनाव को लेकर कई महत्वपूर्ण प्रक्रिया पूरी हो गई है। इन प्रक्रियाओं के पूरी होने के साथ ही राज्य में निकाय चुनाव कराने का रास्ता लगभग साफ हो गया है। चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। नगर विकास विभाग की मानें तो राज्य सरकार दिसंबर या जनवरी तक नगर निकाय चुनाव करा सकती है।
आयोग के अध्यक्ष को 21 अगस्त को सौंपी गई थी रिपोर्ट
निकाय चुनाव कराने से पहले पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा सभी 48 नगर निकायों में डोर-टू-डोर सर्वे कराकर रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में किसी तरह की त्रुटि न रहे, इसके लिए फाइनल रिपोर्ट बनाने का जिम्मा निविदा के माध्यम से संत जेवियर कॉलेज को सौंपा गया था। बीते 21 अगस्त को संत जेवियर कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ फादर रॉबर्ट प्रदीप कुजूर ने आयोग के अध्यक्ष जानकी प्रसाद यादव को फाइनल रिपोर्ट सौंपी थी। फाइनल रिपोर्ट तैयार करने में मध्य प्रदेश में ट्रिपल टेस्ट के अंतर्गत समर्पित रिपोर्ट का अध्ययन झारखंड राज्य के परिदृश्य में किया गया है। ट्रिपल टेस्ट की रिपोर्ट में निकायवार पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग मतदाताओं की कुल संख्या की
जानकारी दी गई है। इसी रिपोर्ट के आधार पर राज्य के 48 निकायों में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण तय किया जाना है।
मार्च 2026 तक चुनाव कराने की डेडलाइन
राज्य सरकार के पास निकाय चुनाव कराने की अंतिम डेडलाइन मार्च 2026 है। तय समय तक चुनाव नहीं कराने पर 15वें वित्त आयोग की अनुशंसा के आधार पर झारखंड को केंद्र से तीन वित्तीय वर्ष की राशि नहीं मिलेगी। यह बात 30 मई को रांची दौरे के क्रम में 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कही थी। उन्होंने कहा था कि इस साल चुनाव कराने पर केंद्र से रोकी गई अनुदान राशि जारी होगी। अनुदान राशि तीन वित्त वर्ष (2023-24, 2024-25 और 2025-26) के लिए होगी। चुनाव नहीं होने से केंद्र के पास राज्य का वित्तीय वर्ष 2023-24 और 2024-25 के लिए क्रमशः 713-713 करोड़ रुपए बकाया है। इस हिसाब से पिछले तीन वर्षों के लिए राशि करीब 2000 करोड़ से अधिक होगी। बता दें कि नागरिक सुविधाओं के लिए केंद्र द्वारा वित्त आयोग की अनुशंसा के आधार पर राज्यों को ग्रांट स्वीकृत किया जाता है।