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    हिमाचल में तबाही ! 17 दिनों में 19 बार फटे बादल, अबतक 82 लोगों की मौत

    AdminBy AdminJuly 7, 2025No Comments4 Mins Read
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    शिमला. पर्यावरण, विज्ञान प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी सुरेश अत्री का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाला जलवायु परिवर्तन लगातार बादल फटने, अचानक बाढ़ आने और भूस्खलन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि परियोजनाओं के लिए निर्माण गतिविधियां हिमाचल जैसे नाजुक पारिस्थितिक तंत्र में सतत और हरित विकास लक्ष्यों के अनुरूप होनी चाहिए.

    ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण आपदाओं में बढ़ोतरी
    उन्होंने कहा कि ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण तापमान में बढ़ोतरी हुई है और पिछले 60 साल के दौरान हिमाचल प्रदेश में तापमान में औसत वृद्धि 0.9 डिग्री रही, जबकि राष्ट्रीय स्तर और एशिया में यह बढ़ोतरी 0.6 डिग्री थी. इसके कारण चरम मौसम की स्थिति, कम बर्फबारी, बसंत ऋतु की अवधि का घटना, मई-जून के दौरान बारिश, नमी और आद्रता के कारण भारी बारिश से बड़े पैमाने पर मिट्टी का कटाव, बादल फटने, अचानक बाढ़ आने और भूस्खलन जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है.
    बारिश के पैटर्न को समझना जरूरी
    अधिकारियों ने बताया कि 20 जून को मानसून की शुरुआत के बाद से पांच जुलाई तक बारिश से जुड़ी घटनाओं में कम से कम 47 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से 31 की मौत बादल फटने, अचानक बाढ़ आने और भूस्खलन में हुई या वे डूब गए. वर्ष 2023 की बाढ़ के दौरान हिमाचल प्रदेश में करीब 550 लोगों की जान चली गई थी. उन्होंने कहा कि ‘हमें अपने वर्षा पैटर्न को समझना और उसका विश्लेषण करना चाहिए क्योंकि यह हमारी कृषि, बागवानी और जल प्रणाली को प्रभावित करता है.’ उन्होंने राज्य में निर्माण गतिविधियों को शुरू करने के लिए सख्त मानदंडों पर जोर दिया.
    कहीं भी फट रहे बादल
    इस बात पर जोर देते हुए कि भारी बारिश केवल संकरी घाटियों तक ही सीमित नहीं है और यह कहीं भी हो सकती है, अत्री ने कहा कि पिछले पांच वर्षों के दौरान प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि भारत मौसम विज्ञान विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति में और तेजी से वृद्धि होगी और लोगों को प्रकृति को बचाने और हरित विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जागरूक और संवेदनशील बनाया जाना चाहिए.
    नदियों- नालों के किनारे निर्माण बंद हो
    अत्री ने बताया कि जलवायु परिवर्तन मिट्टी, जंगलों और पारिस्थितिकी तंत्र में अंतर लाता है क्योंकि हवा गर्म हो जाती है, नमी को अवशोषित करती है, ऊपर उठती है और ठंडी हो जाती है, जो बाद में भारी बारिश में बदल जाती है. अत्री ने कहा कि छोटे क्षेत्रों में 100 मिमी से अधिक की भारी बारिश को बादल फटना कहा जाता है और यह संकरी घाटियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कहीं भी हो सकती है. उन्होंने कहा कि सड़कें और घर हर जगह नहीं बनाए जा सकते और मिट्टी की भौगोलिक स्थिति का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सुरक्षा के लिए नदियों और नालों के किनारे निर्माण से बचना चाहिए.
    मलबा भी तबाही का एक कारण
    सड़कों के निर्माण के दौरान अवैध रूप से मलबा फेंकना भी तबाही का एक और कारण है, क्योंकि भारी बारिश के दौरान इसकी भारी मात्रा के कारण अचानक बाढ़ आती है और भूस्खलन होता है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है. उन्होंने जल निकासी व्यवस्था में छेड़छाड़ के खिलाफ भी चेतावनी दी और कहा कि अभियंताओं को जल निकासी पैटर्न का भी अध्ययन करना चाहिए ताकि पानी का प्रवाह प्रभावित न हो. अत्री ने यह भी बताया कि शिमला-कालका राजमार्ग पर लगातार भूस्खलन का कारण 80 से 90 डिग्री तक का ऊर्ध्वाधर भूमि कटाव और जंगलों की प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली का नष्ट हो जाना है. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में बांधों के निर्माण से स्थानीय जलवायु पर भी असर पड़ा है. अत्री ने कहा कि पहले घास के मैदान थे जो मिट्टी को बांधने में मदद करते थे, लेकिन अब बांधों में गाद जमने से रोकने के लिए बड़े पौधे लगाए गए हैं. उन्होंने कहा कि यह पता लगाने के लिए गहन अध्ययन किया जाना चाहिए कि इन पौधों के लगाने से नमी बढ़ी है या कम हुई है.
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