सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव मामले के फैसले को खारिज करते हुए कहा है कि सांसदों और विधायकों को रिश्वत के बदले विधायिका में वोट देने पर कानूनी कार्रवाई से छूट नहीं है. बेंच ने कहा है कि ये सर्वसम्मति का फैसला है और सुप्रीम कोर्ट छूट से असहमत है. 1998 के फैसले में कहा गया था कि अगर सांसद और विधायक रिश्वत लेकर सदन में वोट देते हैं तो उन्हें मुकदमे से छूट होगी.
‘सीता सोरेन बनाम भारत सरकार’ मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत सांसद और विधायकों को हासिल विशेषाधिकार की व्याख्या की है। ‘सीता सोरेन बनाम भारत सरकार’ मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के फैसला सुनाने वाले जजों में CJI डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
इस मसले पर 1993 से लेकर अब तक करीबन 30 बरस चली अदालती कार्रवाई के दौरान एक कॉमन कड़ी झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिबू सोरेन का परिवार रहा.. 1993 मामले में CBI ने शिबू सोरेन को रिश्वत कांड में अपराधी माना था. जबकि सुप्रीम कोर्ट में हालिया सुनवाई उनकी बहू सीता सोरेन से जुड़े घूसकांड को लेकर हुई.
शिबू सोरेन का मामला
1991 के आम चुनाव के बाद नरसिम्हा राव की सरकार बनी थी। जुलाई 1993 के मॉनसून सत्र के दौरान राव की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था। तब शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के चार सांसदों पर सनसनीखेज आरोप लगे कि उन्होंने रिश्वत लेकर लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग की।
सीता सोरेन मामला
सीता सोरेन का मामला 2012 राज्यसभा चुनाव का है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी और जामा की विधायक सीता सोरेन पर आरोप लगा कि उन्होंने चुनाव में वोट देने के लिए रिश्वत ली थी जिसके बाद सीता सोरेन पर आपराधिक मामला दर्ज हुआ। सीता सोरेन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था मगर उच्च न्यायालय ने उनकी अपील खारिज करते हुए 17 फरवरी, 2014 को आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीता सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई. सीता सोरेन ने 1998 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जिस तरह उनके ससुर को कानूनी कार्रवाई से छूट मिली थी, उन्हें भी सदन में हासिल विशेषाधिकार (प्रिविलेज) के तहत कानूनी कार्रवाई से छूट दी जाये।