चंद महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में झारखंड में विपक्षी इंडिया गठबंधन से दस फीसदी अधिक वोट हासिल करने के बावजूद भाजपा को राज्य की सभी पांच सुरक्षित सीटें गंवानी पड़ी थीं। वजह थी भ्रष्टाचार के मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद आदिवासी वर्ग में स्वजातीय नेता के प्रति उपजी सहानुभूति। अब विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के सामने आदिवासी वर्ग में अपनी खोई साख वापस पाने की चुनौती है, तो हेमंत सोरेन के सामने सहानुभूति लहर को कायम रखने की।
साल 2000 के अंत में अस्तित्व में आए इस राज्य में राजनीतिक दलों का फैसला डबल एम यानी महतो (कुर्मी) और मांझी (आदिवासी) करता आया है। इन दोनों बिरादरी की राज्य की आबादी में हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक है। दोनों ही बिरादरी करीब 80 फीसदी सीटों पर उम्मीदवारों की हार और जीत का फैसला करती है। यही कारण है कि राज्य में दोनों गठबंधनों की रणनीति के केंद्र में यही दो बिरादरी हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में मिली हार और लोकसभा चुनाव में छिटके आदिवासी वोट बैंक से सबक लेकर भाजपा ने कई भूल सुधार किए हैं। आदिवासी बहुल राज्य में गैरआदिवासी रघुवर दास को सीएम बनाने और आजसू से परे अपने दम पर चुनाव लड़ने से हुए सियासी नुकसान के बाद पार्टी ने आदिवासी नेतृत्व को आगे बढ़ाने के साथ आजसू से फिर गठबंधन किया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सोरेन परिवार की बहू सीता सोरेन के बाद हेमंत के करीबी चंपई सोरेन को पार्टी में शामिल किया है। पार्टी की योजना ओबीसी वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने के लिए जदयू से भी तालमेल करने की है। पार्टी ने इस दौरान परिवर्तन यात्राओं के जरिये माहौल को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है।
इंडिया गठबंधन को हेमंत से करिश्मे की आस
झामुमो की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन की आस सीएम हेमंत सोरेन के करिश्मे पर टिकी है…जमानत पर बाहर आने के बाद फिर से सरकार की बागडोर संभालते ही हेमंत ने स्वजातीय वोट बैंक को साधने के लिए कई पहल की है।
भाजपा ने ओबीसी वोट बैंक को साधने और झामुमो के आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति बनाई है। वहीं, झामुमो की रणनीति आदिवासी वोट बैंक को साधे रखने के साथ ही भाजपा के ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगाने की है। पार्टी को लगता है कि इसमें कांग्रेस और राजद मददगार साबित होंगे।
आदिवासी इलाकों की जनसांख्यिकी में बदलाव बड़ा मुद्दा
भाजपा ने घुसपैठ से आदिवासी इलाकों की जनसांख्यिकी में आए बदलाव और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है। वहीं, झामुमो के नेतृत्व में सत्तारूढ़ गठबंधन आदिवासी स्वाभिमान को मुद्दा बनाने की कोशिश में है। हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा को गठबंधन के मुकाबले दस फीसदी अधिक वोट मिले थे। हालांकि 2019 के मुकाबले छह फीसदी अधिक वोट हासिल कर गठबंधन पांच सीटें जीतने में कामयाब रहा था।