पंचम स्कंदमाता
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
वासंतिक नवरात्रि में पांचवने दिन स्कंदमाता की पूजा-अर्चना होती है। स्कंदमाता सम्पूर्ण जगत की भलाई व देवताओं के कल्याण हेतु प्रकट हुई हैं। वह संसार के प्राणियों के लालन-पालन हेतु उसी प्रकार सक्रिय रहती हैं। मां भक्तों पर वात्सल्य को बरसाने हेतु तत्पर रहती हैं। उसके दु:खों को भगाने का यथा प्रयास करती हैं। यदि व्यक्ति भक्ति से इनके प्रति समर्पित हो जाए तो तत्काल फल को देने वाली होती हैं। छान्दोग्यश्रृति के अनुसार भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत्कुमार का नाम स्कन्द है। उनकी माता होने से वे स्कन्दमाता कहलाती है। यह देव सेना के सेनापति भगवान स्कन्द की माता है। इन्होंने दायीं तरफ की नीचेवाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद लिया हुआ है। यह पद्म, पुष्प, वरमुद्रा से युक्त हैं इनका वाहन सिंह है जो पराक्रम वीरता का प्रतीक है। यह माता भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली हैं।
स्कन्दमाता भक्तों के कल्याण हेतु अति तेजस्वी रूप में दिखाई देती है। जिनका दर्शन अति कल्याण प्रद है जो धन, धान्य व संतान को देने वाला है। यद्यपि माता के चरित्र व कथानक का बड़ा ही सुन्दर वर्णन दुर्गासप्तशती में मिलता है। यह माता सभी प्राणियों की पीड़ा को हरने वाली है। सब मे व्याप्त रहने वाली है। इनकी कृपा से सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होती है। मां ही संसार को उत्पन्न करने वाली उन पर वात्सल्य वरसाने वाली है। चाहे कितनी ही कठिन स्थिति हो पर यह संसार का कल्याण करना नही भूलती है। अर्थात् आप ही सदा अभय प्रदान करने वाली है, आप जिन पर प्रसन्न रहती है, वे ही देश मे सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं। देवी आपकी कृपा से ही पुण्यात्मा पुरूष प्रतिदिन अत्यन्त श्रद्धापूर्वक सदा सब प्रकार के धमार्नुकूल कर्म करता है और स्वर्ग लोग मे जाता है, इसलिए आप तीनों लोकों में निश्यच ही मनोवांछित फल देने वाली है।