Close Menu
कोयलाचंल संवाद

    Subscribe to Updates

    Get the latest creative news from FooBar about art, design and business.

    What's Hot

    झारखंड में नई उत्पाद नीति लागू, शराब बिक्री और कीमतों में बड़ा बदलाव

    September 1, 2025

    झारखंड में कमजोर पड़ा मॉनसून, अगस्त में 13% कम हुई बारिश; 2 सितंबर से नए लो प्रेशर का असर

    September 1, 2025

    करम पर्व से पहले महिलाओं के लिए खुशखबरी, ‘मंईयां सम्मान योजना’ की 13वीं किस्त जारी

    August 30, 2025
    Facebook X (Twitter) Instagram
    • E-Paper
    • ताजा हिंदी खबरें
    • झारखंड
    • रांची
    Facebook X (Twitter) Instagram
    कोयलाचंल संवादकोयलाचंल संवाद
    Subscribe
    • कोयलांचल संवाद
    • झारखण्ड
    • बिहार
    • राष्ट्रीय
    • बिज़नेस
    • नौकरी
    • मनोरंजन
    • अंतरराष्ट्रीय
    • खेल
    • E-Paper
      • E-paper Dhanbad
      • E-Paper Ranchi
    कोयलाचंल संवाद
    Home»Breaking News»विश्व आदिवासी दिवस : भारत का एक ऐसा द्वीप जहां रहती है दुनिया की सबसे पुरानी जनजाति
    Breaking News

    विश्व आदिवासी दिवस : भारत का एक ऐसा द्वीप जहां रहती है दुनिया की सबसे पुरानी जनजाति

    AdminBy AdminAugust 9, 2023Updated:August 9, 2023No Comments4 Mins Read
    WhatsApp Facebook Twitter Copy Link Pinterest Email
    world tribal day
    world tribal day
    Share
    WhatsApp Facebook Twitter Copy Link Pinterest Email

    विश्व आदिवासी दिवस : अंडमान द्वीप समूह में एक द्वीप है उसका नाम है सेंटीनल, जिसमें जारवा नाम की जनजाति रहती है. माना जाता है कि वो दुनिया के सबसे पुराने जीवित आदिवासी हैं, जो यहां रहते हैं. करीब 60,000 सालों से ये द्वीप उनका आशियाना है. इस जगह पर बाहरी लोग नहीं जा सकते, क्योंकि यहां जाना किसी के लिए बहुत जानलेवा है.

    05-06 साल पहले एक दो विदेशी चुपचाप वहां गए तो लौटकर जिंदा नहीं आ पाए, केवल वहां से उनकी मृत बॉडी ही लौटी. इस द्वीप का नाम सेंटिनल द्वीप है. आधिकारिक तौर पर भारत सरकार ने यहां किसी के भी जाने पर पाबंदी लगाई हुई है. वैसे जारवा नाम की ये जनजाति अंडमान के एक दूसरे द्वीप ओंगे में भी रहती है. जारवा जनजाति के अब मुश्किल से 400 के आसपास सदस्य ही बचे होंगे, जो 40-50 के अलग ग्रुप्स में रहते हैं.

    जारवा सुअर, कछुआ औऱ मछलियों का शिकार तीर-धनुष से करते हैं. यही उनके जीवन जीने का सहारा हैं. साथ ही उनके खाने में फल, जड़वाली सब्जियां और शहद भी हैं. उनके तीर धनुष चोई लकड़ी से बने होते हैं, जिसे इकट्ठा करने के लिए वो बतरंग नाम के द्वीप की ओर जाते हैं.

    ये दो द्बीपों में रहते हैं.  उसमें ओंगे में तो बाहरी टूरिस्ट जा सकते हैं लेकिन सेंटीनल में उनका जाना बिल्कुल ही प्रतिबंधित है. अंडमान-निकोबार का ये द्वीप बेहद खूबसूरत है. सेंटीनल द्वीप में रहने के कारण जारवा जनजाति के लोगों को सेंटिनेलिस भी कहते हैं. उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं कि कोई वहां आए. इस जनजाति को बहुत खतरनाक माना जाता है.

    सेंटिनल आइलैंड जाना बैन क्यों है?
    अगर आपको बताया जाए कि भारत में ऐसी भी एक जगह है जहां किसी के भी जाने पर रोक है. वहां न सरकारी अफसर जाते हैं, न ही कोई उद्योगपति, न ही आर्मी और न ही पुलिस. यह किंग कॉन्ग फिल्म के स्कल आइलैंड की तरह है, जहां से वापस आना नामुमकिन माना जाता है.

    इस द्वीप का नाम है नार्थ सेंटिनल आइलैंड. आसमान से देखने पर यह द्वीप किसी भी आम द्वीप की तरह एकदम शांत दिखने वाला, हरा भरा और खूबसूरत नजर आता है. लेकिन फिर भी यहां कुछ ऐसा है जिससे ना तो पर्यटक और ना ही मछुआरे वहां जाने की हिम्मत जुटा पाते हैं.

    विश्व आदिवासी दिवस
    विश्व आदिवासी दिवस

    इनका आधुनिक युग से कोई लेना देना नहीं 

    प्रशांत महासागर के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पर एक ऐसी रहस्यमय आदिम जनजाति रहती है, जिसका आधुनिक युग से कोई लेना- देना नहीं है. वह ना तो किसी बाहरी व्यक्ति के साथ संपर्क रखते हैं और ना ही किसी को संपर्क रखने देते हैं. जब भी उनका सामना किसी बाहरी व्यक्ति से होता है तो वे हिंसक हो उठते हैं और घातक हमले करते हैं.

    साल 2006 में कुछ लोग मछुआरे गलती से इस आइलैंड पर पहुंच गए थे. इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते, उन्हें अपनी जान गवांनी पड़ी. इस जनजाति के लोग आग के तीर चलाने में माहिर माने जाते हैं, इसलिए अपनी सीमा क्षेत्र में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों पर भी इन गोलों से हमले करते हैं.

    कितना पुराना है ये द्वीप
    बंगाल की खाड़ी में बसा ये द्वीप यूं तो भारत का ही हिस्सा है, लेकिन यह हमेशा से ही ऐसी पहेली बना रहा है, जिसे कोई भी सुलझा नहीं पाया. ऐसा माना जाता है कि इस द्वीप पर रहने वाली जनजाति का अस्तित्व 60,000 वर्ष पुराना है. लेकिन वर्तमान में इस जनजाति की जनसंख्या कितनी है, यह अभी तक सामने नहीं आया है. एक अनुमान के अनुसार इस जनजाति से संबंधित लोगों की संख्या कुछ दर्जन से लेकर 100-200 तक हो सकती है.

    यहां के लोगों को बाहरी हस्तक्षेप पसंद नहीं
    किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को ये लोग बर्दाश्त नहीं करते, इसलिए इनके बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी जैसे इनके रिवाज, इनकी भाषा, इनका रहन-सहन आदि की किसी को नहीं.

    विश्व आदिवासी दिवस

    Ybn university
    Ybn university
    world tribal day विश्व आदिवासी दिवस
    Share. WhatsApp Facebook Twitter Email Copy Link
    Admin

    Related Posts

    झारखंड में नई उत्पाद नीति लागू, शराब बिक्री और कीमतों में बड़ा बदलाव

    September 1, 2025

    झारखंड में कमजोर पड़ा मॉनसून, अगस्त में 13% कम हुई बारिश; 2 सितंबर से नए लो प्रेशर का असर

    September 1, 2025

    करम पर्व से पहले महिलाओं के लिए खुशखबरी, ‘मंईयां सम्मान योजना’ की 13वीं किस्त जारी

    August 30, 2025
    Add A Comment

    Comments are closed.

    Recent Posts
    • झारखंड में नई उत्पाद नीति लागू, शराब बिक्री और कीमतों में बड़ा बदलाव
    • झारखंड में कमजोर पड़ा मॉनसून, अगस्त में 13% कम हुई बारिश; 2 सितंबर से नए लो प्रेशर का असर
    • करम पर्व से पहले महिलाओं के लिए खुशखबरी, ‘मंईयां सम्मान योजना’ की 13वीं किस्त जारी
    • झारखंड के थानों में प्राइवेट ड्राइवर और मुंशी पर लगेगा ब्रेक, डीजीपी के आदेश के बाद एसपी ने जारी किया निर्देश
    • झारखंड सरकार पर संविदा शिक्षकों की उपेक्षा का आरोप, मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की अपील
    • झारखंड में फिर सक्रिय हुआ मॉनसून, सात जिलों में भारी बारिश का अलर्ट
    Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest Vimeo YouTube
    • E-Paper
    • Content Policy Guidelines
    • Privacy Policy
    • Terms of Use
    © 2025 Koylanchal Samvad. Designed by Aliancy Technologies.

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.