रांची : हफीज उल हसन ने शुक्रवार को झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री पद की शपथ ली. बगैर विधायक बने मंत्री या मुख्यमंत्री पद पर शपथ लेने की झारखंड में यह पांचवीं राजनीतिक परिघटना है. यह और बात है कि इसके पूर्व बिना विधायक बने मंत्री या मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाला कोई भी नेता मंत्री-मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका.
बाबूलाल विधायक तो बने, पर सियासी उथल-पुथल में गंवायी कुर्सी
राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में बाबूलाल मरांडी ने 15 नवंबर 2000 को जब शपथ ली थी, तब वह झारखंड विधानसभा के सदस्य नहीं थे. उस वक्त वह लोकसभा के सदस्य थे और केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री थे. केंद्र में मंत्री का पद छोड़ने के बाद उन्होंने सीएम पद की शपथ ली थी. छह महीने के अंदर विधानसभा की सदस्यता हासिल करने की संवैधानिक बाध्यता थी. उनके सीएम बने कुछ ही दिन गुजरे थे कि रामगढ़ के तत्कालीन विधायक शब्बीर अहमद कुरैशी उर्फ भेड़ा सिंह का निधन हो गया. शब्बीर अहमद कुरैशी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे. उनके निधन से इस सीट पर उपचुनाव हुआ और बाबूलाल मरांडी इस सीट पर जीत हासिल कर झारखंड विधानसभा के सदस्य बने. राजनीतिक परिस्थितियां सामान्य रहतीं तो बाबूलाल मरांडी का मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल 2005 तक होता, लेकिन सियासी उथल-पुथल के चलते उन्हें करीब ढाई साल बाद ही मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी.
बेटे की जगह मंत्री बने थे हेमेंद्र, बेटा जेल से लौटा तो छोड़ी कुर्सी
2006 में राज्य में निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा जब मुख्यमंत्री बने, तब हेमेंद्र प्रताप देहाती को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. वह विधायक नहीं थे. असल में उनके पुत्र भानु प्रताप शाही गढ़वा जिले के भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गये थे. उन्होंने मधु कोड़ा की सरकार को समर्थन दिया था, लेकिन जब सरकार बनी तो उन्हें एक आपराधिक मामले में जेल जाना पड़ा. भानु मंत्री नहीं बन सकते थे, तो मधु कोड़ा ने उनके पिता हेमेंद्र प्रताप देहाती को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया. बाद में जब भानु जेल से बाहर आये, तो उन्होंने बेटे के लिए मंत्री पद छोड़ा.
शिबू सोरेन हार गये चुनाव, गिर गयी थी सरकार
27 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन ने भी बगैर विधायक बने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. इसके बाद वह 2009 में तमाड़ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उतरे थे, लेकिन उन्हें झारखंड पार्टी के प्रत्याशी राजा पीटर उर्फ गोपाल कृष्ण पातर के हाथों पराजित होने के कारण मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था और उनकी सरकार गिर गयी थी.
मुंडा उपचुनाव जीत विधायक बने, पर सीएम का कार्यकाल नहीं कर पाये पूरा
अर्जुन मुंडा 2009 में जमशेदपुर से सांसद चुने गये थे. इसके बाद 11 सितम्बर 2010 को जब वे तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, तो झारखंड विधानसभा सीट के सदस्य नहीं थे. बाद में खरसावां सीट पर हुए उपचुनाव में जीतकर वे विधानसभा पहुंचे, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये. झामुमो द्वारा समर्थन वापस लेने की वजह से उनकी सरकार बीच में ही गिर गयी थी.