अब रांची में पत्थलगड़ी का मुद्दा उठने लगा है। सोमवार को दो दर्जन से ज्यादा संख्या में अलग-अलग आदिवासी समुदाय के लोग शिलापपट्ट लेकर रांची के डोरंडा पहुंच गए। ये यहां अंबेडकर मूर्ति के पास शिलापट्ट लगाना चाहते थे। जिसमें लिखा था कि रांची अनुसूचित क्षेत्र है और यहां शासन-प्रशासन नियंत्रण आदिवासियों के हाथ में होगा।
इसकी सूचना मिलते ही जिला प्रशासन का पूरा अमला मौके पर पहुंच गया। रांची के ट्रैफिक एसपी अजीत पीटर डुंगडुंग ने लोगों को समझाने की कोशिश की। लगभग तीन घंटे तक प्रशासन और लोगों के साथ तीखी बहस होती रही। प्रशासन के सख्त रवैये के बाद वे लोग माने और शिलापट्ट को लगाए बिना वहां से लौटे।
पहड़ा व्यवस्था के तहत संचालित करने का अधिकार
शिलापट्ट लगाने आए धनुआ उरांव ने कहा कि रांची जिला झारखंड राज्य के 5वें अनुसूचित जिला में शामिल है। इसमें शासन- प्रशासन और नियंत्रण आदिवासियों के हाथ में हैं। आर्टिकल-13 के तहत यह अधिकार दिया गया है। यह क्षेत्र मुंडा और उरांव लोगों का है। मुंडा और उरांव का क्षेत्र पड़हा व्यवस्था से संचालित होता है।
शिलापट्ट में क्या लिखा है
शिलापट्ट पर लिखा है कि रांची, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, लातेहार, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसवां, साहेबगंज, दुमका, पाकुड़ और जामताड़ा अनुसूचित जिला है। अनूसूचित जिले में अभी भी झारखंड सरकार का मौजूदा कानून लागू है। जबकि झारखंड सरकार के कानून का विस्तार इन इलाकों में नहीं किया जा सकता है। अनुसूचित क्षेत्रों में आम जनता के लिए भी स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है।