लोहरदगा: पेशरार प्रखंड के सेरेंगदाग थाना क्षेत्र से पुलिस के द्वारा गिरफ्तार किए गए युवकों को निर्दोष बताते हुए ग्रामीणों ने 26 नवंबर को लोहरदगा के सेन्हा थाना को चार घंटे तक घेरे रखा। बाद में सिविल एसडीओ अरविंद कुमार लाल डीएसपी मुख्यालय परमेश्वर प्रसाद प्रखंड विकास अधिकारी अशोक चोपड़ा अंचलाधिकारी हरिश्चंद्र मुंडा थाना प्रभारी सूरज कुमार आदि के द्वारा समझाए जाने के बाद ग्रामीण अपने घरों को लौटे 26 नवंबर को पूर्वाहन 11 बजे से अपराहन तीन बजे तक पहाड़ी क्षेत्र के गांव से आए महिलाएं और पुरुष थाने के मुख्य द्वार को जाम रखा और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की ग्रामीणों का कहना था कि उन्हें एक और नक्सली कहते हैं कि तुम पुलिस के आदमी हो और पुलिस कहती है कि तुम नक्सलियों का साथ दे रहे हो ऐसे में हम सभी लाल टोपी और लाल सलाम के बीच कसमसाने को मजबूर है।
नक्सलियों को डर से खिलाना पड़ता है खाना
ग्रामीणों ने बेबाकी से कहा इसमें कोई दो राय नहीं कि हम लोगों को नक्सली मिलते हैं भोजन बनाने को कहते हैं, खिलाने को कहते हैं। मजबूरन और डर से हमें यह सब करना पड़ता है। पुलिस जाती है तो निर्दोष को पीटती है। साथ में नक्सली धाराओं में गिरफ्तार कर जेल भेज देती है।
हम विरोध करेंगे तो नक्सली हमारे सिर काट देंगे
ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा कि अगर झारखंड के डीजीपी को भी पेशरार प्रखंड के जंगल-पहाड़ों में रहना है और वह परिवार के साथ घर में रहेंगे तो उन्हें भी भोजन कराना पड़ेगा। नक्सलियों के लिए कपड़े पहुंचाने पड़ेंगे। यह अटल और कटु सत्य है। ग्रामीणों ने कहा कि अगर हम विरोध करेंगे तो नक्सली हमारे सिर काट देंगे। बच्चों को उठाकर ले जाएंगे। ग्रामीणों ने कहा कि सरकार हमारी सुरक्षा का व्यवस्था करें। पुलिस को पहाड़ में पेट्रोलिंग कराएं अन्यथा हम लोगों के लिए शहर में व्यवस्था सुनिश्चित कराएं। रहने, पढ़ने, खाने की व्यवस्था कर दें। हम लोग अपना गांव घर छोड़ने को तैयार हैं। रास्ते में ग्रामीणों को रोक दिया गया। अन्यथा 500 से अधिक ग्रामीण थाना घेरने आ रहे थे।
घाघरा थाना से अतिरिक्त बल मंगाया गया
जब ग्रामीण थाने को घेरे हुए थे, उस वक्त आसपास के थानों के पुलिस को भी सेन्हा थाना भेजा गया था। यही नहीं गुमला के घाघरा थाना पुलिस बल को भी थाना प्रभारी की अगुवाई में सेन्हा भेजा गया। बताते चलें कि पहाड़ी क्षेत्र से प्रकाश उरांव, कपिंद्र खेरवार और सुरेश खेरवार को पुलिस ने नक्सली को सहयोग करने के आरोप में गिरफ्तार कर मंडल कारा जेल भेज दिया था। हाल के दिनों में नक्सली घटनाओं के बढ़ने के बाद पुलिस सक्रिय हुई है। नक्सली को सहयोग करने वाले ग्रामीणों पर कार्रवाई कर रही है। पर ग्रामीणों की बड़ी मजबूरी है कि अगर वह नक्सली के बुलाए जगह पर नहीं गए या उन्हें भोजन नहीं दिया तो उनके जान पर आफत आ जाती है। ग्रामीण जेतेश्वर यादव, अनीता उरांव, दीपक उरांव आदि ने कहा कि हम लोगों का जीवन एक बार फिर नर्क बन गया है।
पुलिस और नक्सलियों के बीच पिस रहे ग्रामीण
पुलिस और नक्सलियों के बीच ग्रामीण पिस रहे हैं। सरकार को सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए। आखिर एक साल के अंदर ऐसा क्या हो गया जो ग्रामीणों पर नक्सलवाद इतनी बड़ी आफत बनकर टूट पड़ा। नक्सली घटनाओं में भारी वृद्धि हो गई। आखिर कहां चूक हुई। आखिर किसका संरक्षण नक्सलियों को मिल रहा है? इसकी भी पड़ताल होनी चाहिए। ग्रामीणों ने बताया कि हम लोगों को परेशान करना पुलिस बंद करें। हम नक्सलियों से प्यार नहीं करते डर और मजबूरी से उनके पास जाना पड़ता है।
पुलिस-पब्लिक मीटिंग कर विश्वास बढ़ाएंगे- एसडीओ
प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों को लोहरदगा के अरविंद कुमार लाल ने समझाया कि पुलिस अपने रूटीन के अनुरूप काम कर रही है। अगर कहीं मिसअंडरस्टैंडिंग हुई है तो उसको देखा जाएगा। हम लोग ग्रामीणों के बीच विश्वास बढ़ाने के लिए उन तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए पुलिस पब्लिक मीटिंग को और अधिक करेंगे, ताकि जनता की समस्याओं का समाधान किया जा सके।
किसी निर्दोष को जेल नहीं भेजा जाएगा–डीएसपी
डीएसपी मुख्यालय परमेश्वर प्रसाद ने दो टूक शब्दों में कहा कि ग्रामीण शिकायत लेकर आए थे कि कुछ निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उन्हें जेल भेज दिया गया है। इसकी पड़ताल की जाएगी। इतना सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी निर्दोष व्यक्ति को जेल नहीं भेजा जाएगा।
ग्रामीणों का आरोप- छापामारी में गई पुलिस ने ग्रामीण के घर का ताला तोड़ पैसे निकाले
इधर क्षेत्र के ग्रामीणों ने बताया कि 26 नवंबर को संविधान दिवस के दिन करीब 20 से अधिक पुलिसकर्मी छापामारी के लिए बुलबुल क्षेत्र में गए थे। यहां किशन दयाल उरांव के परिजन पास के घर में शादी में गए हुए थे। उनके घर का ताला तोड़ दिया गया और वहां रखे आठ हजार रूपये पुलिस ले गई। किशन दयाल उरांव की आठ बेटियां हैं। गरीब परिवार का अगर आठ हजार रूपया चला गया तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? ताले तोड़ दिए गए। आखिर इन्हें क्यों नहीं बुलाया गया, जबकि वह गांव में ही मौजूद थे। पुलिस की ऐसी कार्रवाई होती रही। घरों से पैसे उड़ाए जाने लगेंगे तो निश्चित रूप से ग्रामीणों का आक्रोश भड़केगा। इस पर अधिकारियों को विचार करना चाहिए। जिन्होंने रूपए उड़ाए हैं उन पर जांच करनी चाहिए कि जिस परिवार का मुखिया 45 साल का हो और उसकी आठ बेटियां हो उसके लिए आठ हजार रूपये की अहमियत क्या है।