पूर्वी सिंहभूम: जिले के डुमरिया प्रखंड के कालीमाटी गांव के लोग टार्जन (Tarzan) बनकर साल 1986 से जंगल की रक्षा करते आ रहे हैं. इस गांव में कुल पांच टोले हैं. जिनमें 75 घर हैं. यहां के लोगों ने सालों पहले जंगल की रक्षा करने का संकल्प लिया, जिसको आज भी निभाया जा रहा है. प्रत्येक घर के सदस्यों की ड्यूटी लगी हुई है. रोजाना पांच लोग सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक जंगल की पहरेदारी करते हैं. ऐसा ये लोग इसलिये करते है ताकि गांव का पर्यावरण शुद्ध रह सके. बारिश होती रहे, जिससे अच्छी फसल हो सके. जंगल की रक्षा में होने वाले खर्च की व्यवस्था यहां के लोग अपने में चंदाकर करते हैं.
डुमरिया प्रखंड के कालीमाटी गांव के पांच टोले, बाहादा, रोहीनडीह, डुंगरीटोला, सड़कटोला और खेलाडीपा के ग्रामीण बीते 36 सालों से जंगल की रक्षा करते आ रहे हैं. गांव के पास करीब पांच किलोमीटर (50 हेक्टेयर) में घना जंगल है. इस जंगल में कीमती साल के पड़े समेत कई फलदार वृक्ष भी हैं, जिनकी यहां के ग्रामीण रक्षा करते हैं.
36 साल पहले गांव के प्रधान ने लिया था संकल्प
गांव के प्रधान गुईदी हेम्ब्रम ने इसकी शुरुआत 36 साल पहले की. 36 साल पहले गांव में बैठक कर जंगल की रक्षा करने का संकल्प लिया गया. तब से जंगल की रक्षा जारी है. हर घर के सदस्य इसमें योगदान देते हैं. एक दिन में 4 से 5 लोगों की ड्यूटी जंगल की पहरेदारी के लिये लगती है. इसके लिये एक रजिस्टर है, जिसमें रोजाना ड्यूटी करने वाले युवकों का नाम दर्ज होता है. पहरेदारी में जाने वक्त युवक सुबह 6 बजे रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं. फिर शाम को लौटने के बाद हस्ताक्षर कर घर जाते हैं.
लकड़ी माफियाओं से ऐसे करते हैं पेड़ों की रक्षा
जंगल की रक्षा में तैनात युवक लड़की माफिया की मौजूदगी का अहसास होने पर एक-दूसरे को सीटी बजाकर संकेत देते हैं. ये सभी टार्जन की तरह पेड़ पर चढ़कर बैठे हुए रहते हैं. और लड़की माफियाओं को देखते ही सीटी बजाकर एक-दूसरे को सतर्क करते हैं. हाथों में पारंपरिक हथियार एवं तीर-धनुष लेकर जंगल की रखवाली करते हैं. युवकों का कहना है कि कभी-कभी लड़की माफियाओं से विवाद हो जाता है. साथ ही जंगली जानवर के भी हमला के खतरा होता है. इसलिए वे अपनी रक्षा के लिए हथियार पास रखते हैं. जंगल की रक्षा के लिए वे कोई मजदूरी नहीं लेते, बल्कि फ्री में ड्यूटी करते हैं.