झारखंड के बहुचर्चित शराब घोटाले में मुख्य गवाह सिद्धार्थ सिंघानिया ने सीआरपीसी की धारा 164 (BNSS 183) के तहत कोर्ट में बयान दर्ज कराया, जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए है, जिससे प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में हलचल मच जाएगी.
सिंघानिया ने अपने बयान में बताया कि किस तरह छत्तीसगढ़ के शराब सिंडिकेट मॉडल को झारखंड में लागू किया गया और इसमें तत्कालीन उत्पाद सचिव विनय कुमार चौबे की भूमिका निर्णायक रही थी. सिद्धार्थ के दिए बयान के अनुसार, शराब के कारोबार को नियंत्रित करने के लिए जानबूझकर छत्तीसगढ़ का मॉडल अपनाया गया. इसमें छत्तीसगढ़ के अनवर ढेबर, अरुण पति त्रिपाठी और विनय चौबे शामिल थे. अरुणपति त्रिपाठी को JSBCL का कंसल्टेंट बनाना और टेंडर की शर्तों को इस तरह तोड़ना-मरोड़ना कि केवल छत्तीसगढ़ की चुनिंदा कंपनियों को फायदा मिले. यह सब विनय चौबे के संरक्षण और सहमति से हुआ.
सिद्धार्थ सिंघानिया ने यह भी बताया कि राज्य में विदेशी शराब की आपूर्ति के लिए F.L.10A लाइसेंस नीति लागू की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य अवैध कमीशन वसूलना था और प्रति पेटी 300 से 600 रुपये तक का कमीशन वसूला जाता था. इसके अलावा सरकारी दुकानों के माध्यम से ‘नॉन-ड्यूटी पेड’ (बिना टैक्स वाली) शराब भी बेची गई. छत्तीसगढ़ की डिस्टिलरी को झारखंड में सप्लाई का लाइसेंस दिलवाने में भी विनय चौबे की सीधी संलिप्तता बताई गई हैं.
वित्तीय लेनदेन को लेकर भी चौंकाने वाला खुलासा किया गया. सिद्धार्थ के मुताबिक, छत्तीसगढ़ मॉडल को सुचारू रूप से लागू करने के एवज में 40 से 50 करोड़ रुपये अनवर ढेबर, विधु गुप्ता और अरुणपति त्रिपाठी के माध्यम से विनय चौबे तक पहुंचाए गए. शराब दुकानों में लगभग 2500-3000 कर्मचारियों की नियुक्ति प्लेसमेंट एजेंसियों के जरिए की गई, ताकि पूरे सिस्टम पर निजी सिंडिकेट का नियंत्रण रहे. साथ ही, छत्तीसगढ़ की ‘प्रिज्म होलोग्राफी’ कंपनी को ही झारखंड में होलोग्राम का काम दिया गया. उत्पाद विभाग के सचिव विनय चौबे की अनुमति के बिना इतना बड़ा संगठित भ्रष्टाचार संभव नहीं था.

